कहता है दिल , ख्वाब देखना छोर दो
फिर भी दिल है की मानता नही है
रोज़ बुनती है एक नई कहानी
न उसमे राजा और ना उसमे रानी
केवल एक उड़ान रूपी नन्ही परी
जो कहती है उड़ चलो मेरे संग मैं तुम्हारी हूँ
उसी के मीठे सपने
जो जुड़ते और बनते अपने
कहता है दिल न जा उसके आगे
रोक ले उसके बड़ते कदमो को
कही रुक न जाए ये कही सफर मैं
पर नदिया का पानी कभी रुका है
हवा का झोका कभी रुका है
फिर भी मन के विचार कभी माने है
सोच कर ये विचार क्यो ठहरते है
मान के तार बिखरते है
फिर टूट ते है और बिखर जाते है
जुड़ते जुड़ते गुठिया बन जाते है
होती है कड़ी वेदना कभी
पर ख्वाब है की मानते नही
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http://shailendrad.blogspot.com/2008/04/blog-post.html?showComment=1208508300000#c2584641083582780253'> April 18, 2008 at 1:45 AM
Hello Shailendra,
Its very good poem you have written..wonderful work done..keep posting these types of poems..try to write some inspirational poems