सपने देखता हूँ में

Posted On 9:12 AM by Shailendra Dubey |

सपने बहुत देखता हूं...
रात में ही नहीं दिन में भी...
हर रोज एक नया सपना...
ये दुनिया भी एक सुखद सपने की तरह लगती है....
हर दिन लगता है जैसे पिछला दिन सपने की तरह पीछे छूट गया...
और साथ ही छूट गए वो लोग...
वो मील के पत्थर जो गवाह हैं मेरे सपनों के...
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1 Response to 'सपने देखता हूँ में'
  1. Anonymous
    http://shailendrad.blogspot.com/2008/06/blog-post_7477.html?showComment=1213266900000#c1626394123816401992'> June 12, 2008 at 3:35 AM

    its really good poem you have written, hats off to u

     

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